‘श्लेष’ अलंकार
आचार्य मम्मट के द्वारा अपने ग्रन्थ ‘काव्यप्रकाश’ में श्लेष अलंकार का लक्षण इस प्रकार किया है-
वाच्यभेदेन भिन्ना यद् युगपद्भाषणस्पृशः।
श्लिष्यन्ति शब्दाः श्लेषोऽसावक्षरादिभिरष्टधा॥84॥ (काव्यप्रकाश, नवम उल्लास)
‘अर्थभेदेन शब्दभेदः’ इति दर्शने ‘काव्यमार्गे स्वरो न गण्यते’ इति च नये वाच्यभेदेन भिन्ना अपि शब्दा यद् युगपदुच्चारणेन श्लिष्यन्ति भिन्नं स्वरूपम पह्नवते स श्लेषः। स च वर्ण-पद-लिङ्ग-भाषा-प्रकृति-प्रत्यय-विभक्ति-वचनानां भेदादष्टधा।
हिन्दी अर्थ –
अर्थ का भेद होने से भिन्न-भिन्न शब्द एक साथ उच्चारण के कारण जब परस्पर मिलकर एक हो जाते हैं, तब वह श्लेष रूप शब्दालंकार होता है। वह श्लेष अलंकार अक्षर आदि भेद से आठ प्रकार का होता है।
1.वर्णश्लेषस्य उदाहरणम् –
अलङ्कारः शङ्काकरनकपालं परिजनो
विशीर्णाङ्गो भृङ्गी वसु च वृष एको बहुवयाः।
अवस्थेयं स्थाणोरपि भवति सर्वामरगुरो-
र्विधौ वक्रे मूर्ध्नि स्थितवति वयं के पुनरमी॥370॥