भ्रष्टाचार
यहाँ भ्रष्टाचार वहाँ भ्रष्टाचार,
कह-कह सब कतराते हैं।
देखें हम निज व्यक्तित्व को,
क्या हम भ्रष्टाचार से बच पाते हैं॥
एक-दूसरे पर कर आक्षेप,
जो निज गौरव चाहते हैं।
देखें सब उनकी राजनीति को,
वही तो भ्रष्टाचार लाते हैं॥
खत्म न होगा भ्रष्टाचार,
दुनियाँ यूँ चलती जाएगी।
राजनीति की तीव्र लड़ाई में,
सत्ता भी बदली जायेगी॥
देख गरीब की आज दशा,
अनदेखा हो क्यों जग सोता।
उठना ही होगा आज हमें,
आखिर क्यों भ्रष्टाचार होता ॥
पहले कर निज चिन्तन,
फिर देखें पर व्यवहार ।
चले सब सन्मार्ग पर,
यही है हमारा शिष्टाचार॥
क्यूं समाज आज बना,
इतना मतवाला है।
खड़ा अधिक धन चाह में,
भ्रष्टाचार का निवाला है॥
भ्रष्टाचार की अनेक सीढ़ी,
तंबाकू सिगरेट और बीड़ी।
कर सेवन जिसका आज इंसान,
बन बैठा है नरक का मेहमान॥
(कविताकार)
डॉ.मधुसूदन सती
मो.न-9068429661
Note-सर्वाधिकार सुरक्षित।