भ्रष्टाचार पर निबंध हिन्दी में

भ्रष्टाचार’ पर निबंध 

           ‘भ्रष्टाचार’ शब्द मूलतः दो शब्दो के मेल से बनता है, भ्रष्ट+आचार ;अर्थात् भ्रष्ट, पतित, आचरण को ही हम भ्रष्टाचार शब्द से सम्बोधित करते हैं। भ्रष्टाचार के विविध रूप आज समाज में व्याप्त हैं।

            आधुनिक समाज की विश्वस्तरीय समस्याओं में भ्रष्टाचार की समस्या का एक प्रमुख स्थान है, आज समाज के सामने तथा सम्पूर्ण विश्व के सामने यह समस्या एक छोटी समस्या नहीं रह गई है अपितु यह समस्या समाज में जटिलता को प्राप्त हो रही है। वैश्विक स्तर पर भी इस समस्या के विषय में विचार विमर्श किया जा रहा है, भ्रष्टाचार की प्रकृति इतनी जटिल है कि आज मानव जाति के सम्मुख पग-पग पर भ्रष्टाचार किसी न किसी रूप में विद्यमान है किन्तु उसे पहचानना एक कठिन कार्य हो गया है। हर इंसान कहीं न कहीं किसी रूप में भ्रष्टाचार से सम्बन्ध अवश्य रखता है, वह भ्रष्टाचार से बचना तो चाहता है किन्तु बच नहीं पाता है, इसी भाव का स्पष्टीकरण यहाँ पर निम्नलिखित पंक्ति करती है जो कि डॉ.मधुसूदन सती द्वारा लिखी गई है –

    “यहाँ भ्रष्टाचार वहाँ भ्रष्टाचार,

                    कह-कह सब कतराते हैं।

   देखें  निज व्यक्तित्व को,

                 क्या हम भ्रष्टाचार से बच पाते हैं।।   

 

भ्रष्टाचार के मूलभूत कारण

              इस भौतिक जगत में जो कुछ भी होता है उसके मूल में कोई न कोई कारण अवश्य विद्यमान होता है। यदि कोई मनुष्य किसी कार्य को साधने में लगा रहता है तो उसके मूल में भी कोई कारण अवश्य होता है जो मनुष्य को बार-बार प्रोत्साहित करता है। इसी तरह समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार की समस्या के मूलभूत कारण अधोलिखित हैं –

(१).आधु‌निक शिक्षा पद्धति- भ्रष्टाचार के विविध रूप हैं जिसमें दुर्व्यवहार, दुर्व्यसन को भी रखा जा सकता है। आज बालक शुरू से ही दुर्व्यसनों का आदी हो जाता है तथा परिवार में उसका अच्छा व्यवहार नहीं रहता है। इसका मूल भूत कारण है आधु‌निक शिक्षा पद्धति । इस शिक्षा पद्धति में आधुनिकता की शिक्षा तो प्रदान की जाती है किन्तु हमारे संस्कार और संस्कृति की शिक्षा लेशमात्र ही दी जाती है, जिसके अभाव के कारण बालक बड़ा  होकर भ्रष्ट आचरण करने से नही घबराता है।

(२).आर्थिकनीति– आज समाज को यदि एक तरफ आर्थिक नीति ने प्रबल बनाया, तो दूसरी ओर उसे निर्बल भी बनाया है। आर्थिक नीति के कारण ही धनिकों तथा श्रमिकों के मध्य भेद उत्पन्न हुआ। समुचित आर्थिक नीति न होने के कारण धनिक लोग अधिक धनी होते जा रहे हैं, जबकि श्रमिकों को उनके परिश्रम का पूर्ण लाभ भी प्राप्त नही हो रहा है। इसी कारण से लोगों के द्वारा अपनी अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भ्रष्टाचार का सहारा लिया जा रहा है ,जिसमें चोरी, डकैती,घूष लेना आदि सब सम्मिलित है।

(3).राजनैतिक क्षेत्र -आज समाज में सभी के सामने यह अवश्य दृष्टिगोचर होता दिखलाई दे रहा है कि राजनैतिक क्षेत्र भी भ्रष्टाचार से अछूता नही है बहुत से स्थानों पर राजनैतिक क्षेत्रों में भी आर्थिक घोटालों के द्वारा भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिल रहा है,जिस कारण से समाज में यह समस्या एक प्रदूषण के रूप में व्याप्त हो रही है।

 

समाधान

(१).संस्कारित शिक्षा -आधुनिक समाज को यदि हमें भ्रष्ट आचरण से मुक्त करना है तो हमें बच्चों को आधुनिक शिक्षा के साथ-साथ संस्कारित शिक्षा अनिवार्य रूप से देनी होगी, बच्चों को संस्कारो से परिचित करवाना ही हमारा परम कर्तव्य होना चाहिए, क्योंकि शिक्षा ही मनुष्य का मार्गदर्शक बनती है।

(२).भेद‌भाव का विनष्टीकरण– यदि आज हमें समाज को प्रगति के पथ पर अग्रसर करना है तथा समाज को भ्रष्टाचार रहित समाज बनाना है ,तो हमे समानता के अधिकार को अपने जीवन में अपनाना होगा। साम्प्रदायिक भेदभाव का विनष्टीकरण करके तथा आर्थिक भेदभाव का विनष्टीकरण करके “बसुधैव कुटुम्बकम्” के विचार के दर्शन को जीवन में उतारना होगा। आवश्यकता से अधिक धन आदि को परोपकार के लिए समर्पित करने से ही यह भेद‌भाव नष्ट हो सकता है, इसी से आर्थिक दृष्टि के कारण होने वाले भ्रष्टाचार पर कुछ हद तक नियन्त्रण किया जा सकता है।

(३)-धार्मिक, राजनैतिक एवं अन्य क्षेत्रों में सुधार– आज समाज के धार्मिक ,राजनैतिक एवं अन्य क्षेत्रों में भी सुधार होना चाहिए, जिन लोगों द्वारा राजनैतिक, धार्मिक एवम् अन्य क्षेत्रों में भ्रष्टाचार को प्रोत्साहन दिया जाता है उन लोगों के ऊपर कानून के द्वारा कठोर  से कठोर कार्रवाई की जानी चाहिए।

               निष्कर्ष रूप से यह कहा जा सकता है कि उपर्युक्त उपायों के माध्यम से हम समाज को कुछ अंश तक भ्रष्टाचार से मुक्त कर सकते हैं जबकि पूर्ण रूप से समाज को भ्रष्टाचार मुक्त करने के लिए समाज के प्रत्येक व्यक्ति को सर्व प्रथम अपने व्यक्तित्व पर नियन्त्रण रखना होगा। प्रत्येक व्यक्ति का जीवन दर्शन अनुशासित होना चाहिए, जैसा कि डॉ.मधुसूदन सती ने भ्रष्टाचार कविता में उल्लेख भी किया है –

   पहले कर निज चिन्तन, फिर देखे पर व्यवहार।

         चले सब सन्मार्ग पर, यही हमारा शिष्टाचार।।

 

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